माँ की याद में...!


--------------------------------


     माँ की याद में...!


    अयोध्या धाम में,
 प्रस्फुटित विद्या के अंकुर
   पल्लवित हो,एक
    वट वृक्ष बन गए...!
   निरंजन के उपवन का,
    प्रकाश पुंज हूं मैं
   प्रारब्ध की पल्लविता,
 और रिश्तों की ओट से
 उपेक्षाओं के दंश को भी,
पीकर   तूने ,मुझे जना...!
      इस लिए मैं तेरे,
   दूध का कर्जदार हूं...!
तेरी ममता का हरसिंगार हूं..!!
  छल और कपट से तू,
   कोसों दूर थी ........!
  अनकहे रिश्तों में भी,
  तू सबके करीब थी ..!!
    रिश्तों के नाम पर,
मेरे थे तो सभी अपने...!
  मुफलिसी के दौर में,
 ना दीखे,मुझे अपने...!!
तूने,सप्तरंगी मुस्कानों से,
  सदा संवारा मुझको ...!
 मेरे आंसू को पी पीकर,
 मेरे ख्वाबों को सींचा..!
अगर मुझे मालूम हो जाए,
    तेरा ठौर ठिकाना
  नंगे पैर में दौड़ा आऊं,
मां, त्यज के सारा ज़माना ..!!
मै, सृजनशील बन जाऊं,
आशीष मुझे दे हे ..! माता
अपराध क्षमा करना मेरे,
हे...! अदृष्यमई माता ...!!


प्रस्तुति,प्रमोद तिवारी ( प्रचंड राही )
संपादक,एशिया लाइट,लखनऊ